मूर्ख शिष्योपदेशेन दुष्टास्री भरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
भावार्थ
मूर्ख शिष्य को उपदेश देने पर, दुष्ट स्त्री का भरण पौषण तथा दुःखियों के संपर्क में रहने पर
विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है।
Chanakya Niti अध्याय 1 के इस श्लोक में आचार्य चाणक्य का कहना है कि विद्वान व्यक्ति दुःखी इसलिए होता है अगर अपना ज्ञान किसी ऐसे व्यक्ति अथवा शिष्य को देता है जिसको ज्ञान की समझ नहीं है। इसके बाद अगर किसी ऐसी स्त्री को साथ देता है या उसके साथ रहता है जो लालची है , दुष्ट है अपने कर्मो से तो वो उसको भी नहीं छोड़ती समय समय पर उसका फायदा ही उठती है क्योकि वो ज्ञान की वजह से उसकी गलतिओ को नज़अंदाज़ करता है। इसके अलावा अगर आपके आस पास का माहौल भी दुखी लोगो से भरा हुआ है तो उस व्यक्ति पर भी सांगत का असर होगा और वो तब भी दुखी ही रहने लगेगा।
शब्दार्थ:
- मूर्ख शिष्योपदेशेन — मूर्ख शिष्य को उपदेश देने से
- दुष्टास्री भरणेन च — दुष्ट पत्नी का भरण-पोषण करने से
- दुःखितैः सम्प्रयोगेण — दुःखी लोगों के साथ रहने से
- पण्डितः अपि अवसीदति — पण्डित (विद्वान) भी दुखी हो जाता है / पतित हो जाता है
Meaning in English
“By teaching a foolish student, by maintaining a wicked wife, and by associating with sorrowful people — even a wise person becomes miserable.